केरल: जहां प्रकृति के साथ झूमने को जी चाहे

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आप सैर-सपाटे की इच्छा रखते हैं, स्वास्थ्य लाभ के लिए पर्वतीय स्थल पर जाना चाहते हैं, आयुर्वेद उपचार के माध्यम से निरोग होना चाहते हैं, समुद्र में भ्रमण करते हुए घर जैसा आनंद लेना चाहते हैं या विश्राम के लिए पूर्ण शांत वातावरण चाहते हैं तो इधर-उधर भटकने की जरूरत नहीं है, बस केरल चले जाइए। आजकल केरल बड़े-बड़े उद्योगपतियों, राज्याध्यक्षों, नव दंपतियों, ढलती उम्र की दहलीज पर पहुंचे लोगों, युवाओं, थके-हारे तनावग्रस्त लोगों यानी सभी वर्ग के लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बन गया है। करीब 600 कि.मी. लंबी और 120 कि.मी. चौड़ी पट्टी के आकार का केरल अपने अंदर तमाम प्राकृतिक छटाओं को समेटे हुए है। जहां भारतीय प्रायद्वीप के अन्य भाग जैसे मैसूर महलों के लिए, राजस्थान अतीत के ठाट-बाट और युद्ध संबंधी गाथाओं के लिए, गोवा सैर-सपाटे एवं पार्टियों के लिए, ऊटी, कुल्लू वगैरह स्वास्थ्य लाभ के लिए प्रसिद्ध है, वहीं केरल अपने विशाल समुद्र तट, आश्चर्यजनक जलधारा, बहुरंगी संस्कृति, कई तरह के आयुर्वेदिक उपचारों, चारों तरफ फैली हरियाली, पहाड़ी ढलानों और चट्टानों के कारण पर्यटकों को अपनी तरफ खींचता है। पर्यटकों के लिए केरल की सुंदरता और महत्व का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि नेशनल ज्यॉग्रफिक ट्रैवलर ने सहस्त्राब्दि के अपने 50 अति महत्वपूर्ण पर्यटन स्थलों की सूची में केरल को जगह दी है।

करीब 600 साल पहले मार्कोपोलो ने केरल की वाणिज्यिक व्याख्या करके व्यवसायियों को इसकी तरफ आकर्षित किया था। इसके बाद ही क्रिस्टोफर कोलंबस समेत कई लोग मालाबार की खोज में निकल पड़े थे। मार्कोपोलो ने इसे कालीमिर्च, दालचीनी, सोंठ और भारतीय गिरीदार फल से परिपूर्ण क्षेत्र की संज्ञा दी थी। वैसे केरल में गोवा की तरह रात्रि जीवन नहीं के बराबर है। यह जगह गोवा के रात्रिकालीन चहल-पहल के मुकाबले पूरी तरह से शांति की चादर ओढ़े हुए है।

सांस्कृतिक विरासत

प्रतिवर्ष करीब 50 लाख से ज्यादा विदेशी-विदेशी पर्यटक केरल आते हैं। पिछले पांच सालों में विदेशी पर्यटकों की संख्या में भारी इजाफा हुआ है। अपनी खूबियों की वजह से कोई राज्य किस तरह पर्यटन स्थल बन जाता है, इसका सटीक उदाहरण केरल है। देश में सर्वाधिक साक्षरता, सबसे बढि़या आयुर्वेदिक स्वास्थ्य सेवा, आधुनिक सोच, समय की परख और उत्कृष्ट मार्केटिंग के समन्वय ने यहां अपना कमाल दिखाया है।

मनोरम समुद्री दृश्य, 900 कि.मी. लंबा समुद्र तट, 44 नदियां इस राज्य की शोभा को दुगुनी करती हैं। केरल में आधा दर्जन से ज्यादा अभयारण्य हैं। इलायची, काली मिर्च, चाय, रबर के हरे-भरे बागान वाला यह राज्य पारंपरिक संस्कृति को सहेजते हुए मार्शल आर्ट और कथकली, मोहिनी अट्टम, थेय्यम जैसे विभिन्न शास्त्रीय नृत्यों का पोषण भी करता है। और इन सबसे महत्वपूर्ण है-यहां की आयुर्वेदिक उपचार की पुरानी परंपरा।

केरल को छोड़कर किसी राज्य ने अपनी स्वाभाविक विशेषता को इतना ज्यादा विकसित नहीं किया होगा। केरल ने उत्तरी वायनाड जिले में पेड़ों का घर ‘ट्री हाउस’ बनाकर पर्यटकों को लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। शांत समुद्री किनारे, झूमते नारियल के पेड़, कोहरे से आच्छादित पर्वतीय स्थल, हरे-भरे ऊष्ण कटिबंध वन, झरने, विलक्षण जीव-जंतु, स्मारक स्थल, कलाकृतियां तथा उत्सव इस राज्य को एक अद्भुत आभा प्रदान करते हैं।   समुद्र तट

भारत के बेहतरीन समुद्री तट केरल में हैं। 900 कि.मी. तक फैले ये तट रेतीले किनारों, चट्टानी द्वीपों तथा नारियल के पेड़ों से घिरे हुए हैं। प्रत्येक वर्ष असंख्य पर्यटक शांत वातावरण तथा नारियल के पेड़ों से घिरे किनारों पर अपनी छुट्टियां बिताने यहां आते हैं।

कोवलम:

यह प्रसिद्ध अंतरराष्ट्रीय पर्यटन स्थल सन 1930 से ही नियमित रूप से आकर्षण का केंद्र रहा है। कोवलम में तीन अ‌र्द्धचंद्राकार समुद्र तट हैं। इन तीनों समुद्र तटों में से सर्वाधिक प्रसिद्ध किनारा लाइटहाउस के नाम से जाना जाता है। इस समुद्री तट पर पहुंचना भी आसान है क्योंकि यह केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम से सोलह किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और बस से आधे घंटे में पहुंचा जा सकता है। यहां अच्छे, महंगे और सस्ते दोनों तरह के आवास उपलब्ध हैं।

वारकला: यहां का पप्पनसम समुद्री तट शांत, रेत के विस्तार, स्वच्छ झरनों तथा चट्टानी पहाडि़यों के कारण जाना जाता है। 2000 वर्ष पुराना श्री जनार्दन स्वामी मंदिर तथा नेचर केयर सेंटर भी यहां के आकर्षण हैं। यह समुद्र तट तिरुवनंतपुरम से 40 कि.मी. की दूरी पर स्थित है और राजधानी से यहां के लिए नियमित रूप से बसें उपलब्ध हैं। यहां आने के लिए रेल सुविधा भी उपलब्ध है।

कप्पड़: यह वह स्थान है जहां 1498 ई. में वास्को-डि-गामा आया था। इसके ऐतिहासिक उद्गम के जुड़ी दंत कथाएं तथा रीति-रिवाज इस समुद्री तट को एक रहस्यमय रूप देते हैं। कप्पड़ अपने आयुर्वेदिक स्वास्थ्य केंद्र सुविधाओं के कारण भी प्रसिद्ध है। कप्पड़ की  कोझीकोड से 14 कि.मी. की दूरी है।

बेकल: यह केरल का एक अन्य समुद्री तट है जो पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है, जहां बेकल का किला लंबे संुदर नारियल के पेड़ों से घिरे दो द्वीपों के बीच में स्थित है। केरल में यह सबसे बड़ा व संरक्षित किला है। यह किला विभिन्न ताकतों जैसे विजयनगर साम्राज्य, टीपू सुल्तान तथा अंग्रेजी हुकूमत के अधीन रह चुका है। किले की प्रभावशाली स्थिति उत्तर और दक्षिण के उस पार एक विस्मयकारी छाप छोड़ती है। यह कोझीकोड से 160 किलोमीटर की दूरी पर है और 4 घंटे में कोझीकोड से यहां पहुंचा जा सकता है।

पर्वतीय स्थल

अपने समुद्री तटों के अतिरिक्त केरल अपने पर्वतीय पर्यटक स्थलों के लिए भी जाना जाता है। इन पर्वतीय स्थलों का अधिकांश आकर्षण पूर्वी घाटों के ऊपरी क्षेत्रों में बसा हुआ है। 1520 मीटर औसत ऊंचाई वाले इन घाटों के उष्ण कटिबंधीय वन वनस्पति तथा जीव-जंतुओं से भरपूर हैं। चाय, कॉफी, रबर तथा खुशबूदार इलायची के बागानों के विषय में जितना कहा जाए उतना ही कम होगा। इसकी सुंदरता यहां आकर ही देखी जा सकती है।

मुन्नार: केरल के पर्वतीय स्थलों में मुन्नार का नाम प्रमुखता से आता है। समुद्री तल से लगभग 1600 मीटर ऊंचाई पर स्थित मुन्नार प्रकृति प्रेमियों का आकर्षण केंद्र है। दक्षिण भारत का यह स्थान कभी अंग्रेजी सरकार का ग्रीष्मकालीन आवास हुआ करता था। विस्तृत चाय बागान, दर्शनीय शहर, घुमावदार रास्ते तथा आवास-गृह इसे एक लोकप्रिय पर्वतीय स्थल बनाते है। वनों की विलक्षण वनस्पति तथा हरे घास के मैदानों के बीच यहां नीलकुरंजी नामक फूल पाया जाता है। यह फूल बारह वर्षो में केवल एक बार पूरी पहाड़ी को नीला बना देता है। मुन्नार में दक्षिणी भारत की सबसे ऊंची चोटी अनाइमुड़ी भी है जिसकी ऊंचाई लगभग 2695 मीटर है। वहां तक ट्रेकिंग करने का अपना अलग ही मजा है। इस ट्रेकिंग के दौरान रास्ते में इराविकुलम नेशनल पार्क पड़ता है। यह अभयारण्य नीलगिरी की जाति को बचाने के लिए स्थापित किया गया था। मुन्नार का अन्य आकर्षण मेडूपट्टी बांध है जहां विशाल पानी का भंडार चारों तरफ की खूबसूरत पहाडि़यों से घिरा हुआ है। यहां नौका विहार और स्पीड मोटर बोट की सुविधा का भी लुत्फ उठाया जा सकता है। मुन्नार कोची से लगभग 130 कि.मी. की दूरी पर है।

पीरमेड: केरल का यह सुंदर पर्वतीय स्थल समुद्री तल से 915 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और पेरियार वन्यप्राणी उद्यान के रास्ते में पड़ता है। यह सुंदर स्थान किसी जमाने में ट्रावनकोर के महाराजाओं का ग्रीष्मकालीन आवास गृह हुआ करता था। सड़क के किनारे यहां आपको मिलेंगे विस्तृत चाय, कॉफी, इलायची, रबर व यूक्लिप्टस के बागान और साथ में प्राकृतिक घास के मैदान व घने जंगल। यह स्थान कोट्टयम से 75 कि.मी. की दूरी पर स्थित है।

विथीरी: यह पर्वतीय स्थल केरल के उत्तर-पूर्वी भाग में समुद्र तल से 1300 मीटर ऊंचाई पर स्थित है। विथीरी कॉफी, चाय, इलायची, काली मिर्च व रबर के लिए प्रसिद्ध है। कोहरे से ढंकी पहाडि़यां तथा विस्मयकारी दृश्य पर्यटकों को अपनी ओर बरबस आकर्षित करते हैं। कोझीकोड से 100 कि.मी. दूर इस स्थान पर पहुंचने के लिए बसें आसानी से उपलब्ध हैं।

पोनमुडी: समुद्र स्तर से 915 मीटर ऊंचाई पर स्थित पोनमुडी एक संकीर्ण, घुमावदार रास्तों वाला पर्वतीय स्थल है। यह हरियाली से घिरा हुआ है। सुंदर पहाड़ी फूलों, विलक्षण तितलियों, छोटी-छोटी नदियों तथा झरनों के लिए प्रसिद्ध यह स्थान ट्रेकिंग के लिए भी प्रसिद्ध है। यह स्थल तिरुवनंतपुरम से 61 कि.मी. की दूरी पर है।

पेरियार:

यह वन्यप्राणी उद्यान भारत के बड़े वन्य प्राणी उद्यानों में से एक है। पेरियार वन्यप्राणी उद्यान बाघ संरक्षण के लिए है। 777 वर्ग किलोमीटर में फैले इस अभयारण्य की सुंदरता यहां के घने जंगल और 20 वर्ग किलोमीटर में फैली झील है। इस सुंदर झील में नौका विहार द्वारा आप इस वन्यप्राणी उद्यान को देखने का आनंद उठा सकते हैं। हाथियों के झुंड यहां के आकर्षण का केंद्र हैं जो खेलने के लिए झील के पानी में उतर आते हैं। बाघ, सांभर, जंगली भैंसा, धब्बेदार हिरन, चीता, मालाबार गिलहरियां तथा धारीदार गर्दन वाला नेवला आदि भी यहां देखे जा सकते हैं। एक महत्वपूर्ण मसाला व्यापार केंद्र, कुमली भी इसी की बगल में है। यह स्थान कोची से 190 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

जलक्रीड़ा कोलाम: मालाबार तट का प्राचीनतम बंदरगाह कोलाम कभी अंतर्राष्ट्रीय मसाला व्यापार केंद्र हुआ करता था। तिरुअनंतपुरम के उत्तर में इस ऐतिहासिक शहर का 30 प्रतिशत हिस्सा अस्थमुडी झील से घिरा हुआ है। कोलाम तथा अलाप्पुजा के बीच यह 8 घंटे का सफर सबसे लंबा तथा केरल के जलप्रपातों का मोहक अनुभव है। कोलाम तिरुअनंतपुरम से लगभग 72 किलोमीटर दूर है।

अलाप्पुजा: नौका दौड़, हाउसबोट, समुद्री किनारों, समुद्री उत्पाद तथा जूट उद्योगों के लिए प्रसिद्ध अलाप्पुजा को पूरब का वेनिस भी कहा जाता है। यहां एकमात्र वैशिष्ट्य है कट्टानड़। केरल में कट्टानड़ ही शायद विश्व का ऐसा स्थान है जहां समुद्र तल से नीचे खेती की जाती है।  कुमाराकम:

कोट्टयम से 12 किलोमीटर दूर यह अनोखा तंबानड़ स्थल झील के किनारे स्थित है। इसे कट्टानड़ के जलप्रपातों का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है। कुमाराकम पक्षी उद्यान विश्व के प्रवासी पक्षियों का मनपसंद बसेरा है जिनके कारण यह पक्षी संरक्षण केंद्र प्रसिद्ध है। हाउसबोट में यात्रा करने के लिए भी कुमाराकम बेहतरीन स्थल माना जाता है।

कोची: केरल की व्यावसायिक तथा औद्योगिक राजधानी कोची विश्व के बेहतरीन प्राकृतिक बंदरगाहों में से एक है। इस शहर में राष्ट्रमंडल का प्राचीनतम यहूदी प्रार्थना भवन तथा अनेक प्राचीन चर्च व मंदिर भी हैं। इस यहूदी प्रार्थना भवन के आस-पास जीउ टाऊन है जो मसाला व्यापार तथा कलाकृतियों की दुकानों का केंद्र है। इस सुंदर टापुओं वाले शहर में अरब, चीन, हालैंड, ब्रिटेन तथा पुर्तगाल के अनेक समुद्री यात्रियों का प्रभाव देखने को मिलता है। कोची में घूमने का पूरा आनंद साधारण नौकाओं में बैठकर ही लिया जा सकता है। इन घुमावदार जलीय रास्तों की यात्रा आपको अनेक मनोहर स्थलों की सैर कराएगी। कोची भारत के सभी शहरों से वायु, समुद्र तथा रेलवे लाइनों से पूरी तरह जुड़ा हुआ है।

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