धर्म-संस्कृति व त्योहार , से जुड़े परिणाम

पापमोचक रोमांचक अमरनाथ यात्रा

पापमोचक रोमांचक अमरनाथ यात्रा

बम-बम भोले की गूंज और पीछे चलता भक्तों का झुण्ड. घाटी के शांति में जब शिव भक्त बम-बम बोलते जाते हैं तो ऐसा लगता है कि खुद पर्वत भी बम भोले की पुकार कर रहे हैं. भारत में आस्था रोम-रोम में बसती है और भगवान शिव के भक्त तो कावंड़ से लेकर अमरनाथ तक अपनी भक्ति को दर्शाते हैं. कब शुरू होती है यात्रा अमरनाथ यात्रा अमूमन जुलाई और अगस्त के महीने में होती है. इस वर्ष यह यात्रा 1 जुलाई से शुरू होकर 24 अगस्त तक जारी रहेगी. अमरनाथ यात्रा को उत्तर भारत की सबसे पवित्र तीर्थयात्रा माना जाता है. वैसे तो अमरनाथ गुफा तक... आगे पड़ें

पूर्ण होती मनोकामना पूर्णागिरि में

पूर्ण होती मनोकामना पूर्णागिरि में

देवभूमि उत्तराखंड में स्थित अनेकों देवस्थलों में दैवीय-शक्ति व आस्था के अद्भुत केंद्र बने पूर्णागिरि धाम की विशेषता ही कुछ और है। जहां अपनी मनोकामना लेकर लाखों लोग बिना किसी नियोजित प्रचार व आमंत्रण के उमड पडते हैं जिसकी उपमा किसी भी लघु-कुंभ से दी जा सकती है। टनकपुर से टुण्यास तक का संपूर्ण क्षेत्र जयकारों व गगनभेदी नारों से गूंज उठता है। वैष्णो देवी की ही भांति पूर्णागिरि मंदिर भी सभी को अपनी ओर आकर्षित किए रहता है। हिंदू हो या मुस्लिम, सिख हो या ईसाई- सभी पूर्णागिरि की महिमा को मन से... आगे पड़ें

सिलवासा: आपाधापी से दूर सुकून के पल

सिलवासा: आपाधापी से दूर सुकून के पल

महानगरों की आपाधापी से दूर और इतना दूर भी नहीं हैं- दादरा व नागर हवेली। एक नाम जो सामान्य ज्ञान की किताबों से ही जाना-समझा। सिलवासा वहां की ही राजधानी है। विशाल कतारबद्ध पेडों के बीच गुजरती सडकें, क्षितिज तक फैली छोटी-छोटी पहाडियां, खिलखिलाती नदियां, श्वेत चादर सरीखे जल-प्रपात, मखमली घास के मैदान.. छोटे से सिलवासा में बहुत कुछ समाया हुआ है। प्रकृति यहां सुकून का गीत गाती है। हर कदम पर कुछ नया, कुछ रोमांचक और थोडी ताजगी। यहां के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का चालीस फीसदी आरक्षित वनक्षेत्र है। ये जंगल... आगे पड़ें

विविध रंग कर्नाटक के

विविध रंग कर्नाटक के

भारत के बागों का शहर (गार्डेन सिटी) के नाम से मशहूर बेंगलूर देश की सूचना तकनीकी राजधानी भी है। यह परंपरागत द्रविड व आधुनिक वास्तुकला के बेजोड मेल का उत्कृष्ट नमूना है। बेंगलूर से 150 किमी दूर मैसूर भव्य महलों, विशाल क्षेत्र में फैले बगीचों (विशेष कर वृंदावन गार्डेन) का अनोखा शहर है जहां प्राचीन विश्व का मनोहारी आकर्षण आधुनिक सुंदरता से कहीं ऊपर दिखता है। मैसूर के मुख्य बस स्टैंड से महज 3 किमी दूर स्थित जिंजर होटल से शहर में स्थित मनपसंद पर्यटन स्थलों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों तक पहुंचना अत्यंत... आगे पड़ें

मेलों की बहार

मेलों की बहार

पुष्कर मेला, पुष्कर, अजमेर भारत में किसी पौराणिक स्थल पर आम तौर पर जिस संख्या में पर्यटक आते हैं, पुष्कर में आने वाले पर्यटकों की संख्या उससे कहीं ज्यादा है। इनमें बडी संख्या विदेशी सैलानियों की है, जिन्हें पुष्कर खास तौर पर पसंद है। हर साल कार्तिक महीने में लगने वाले पुष्कर ऊंट मेले ने तो इस जगह को दुनिया भर में अलग ही पहचान दे दी है। मेले के समय पुष्कर में कई संस्कृतियों का मिलन सा देखने को मिलता है। एक तरफ तो मेला देखने के लिए विदेशी सैलानी पडी संख्या में पहुंचते हैं, तो दूसरी तरफ राजस्थान... आगे पड़ें

थोड़ा ठोडा हो जाए

थोड़ा ठोडा हो जाए

हरियाली ओढे, सीढीनुमा खेतों से सजी, स्वास्थ्यव‌र्द्धक चीड व अन्य वृक्षों से आबाद पहाडियों के बीच मैदाननुमा खुली जगह पर चारों ओर भीड लगी है। सुंदर, सजीली, भोली, लजीली, कोमल पहाडी युवतियां मेले में पारंपरिक सलवार कुर्ता, घाघरा पहने सर पर चटकीले रंगबिरंगे ढाठू बांधे, मेले में लगी दुकानों पर खिलखिलाते हुए मंडरा रही हैं। उधर मैदान के हर ओर हजारों गांववासी मनपसंद परिधानों में जमे हुए प्रतीक्षा कर रहे हैं। गप्पे लड रही हैं, आंखें मटक रही हैं। पुराने संबंधियों व मित्रों से मुलाकातों के बीच अपनी... आगे पड़ें

नाग देवता का सेममुखेम

नाग देवता का सेममुखेम

सेममुखेम की यात्रा श्रद्धालुओं के लिए अविस्मरणीय होती है। इस नागतीर्थ की जानकारी मुझे लखनऊ प्रवास के दौरान अपने बडे भाई विजय गैरोला से मिली। उनके विस्तार से सुनाए इस तीर्थ यात्रा के संस्मरण ने मुझे यहां जाने के लिए प्रेरित किया और मैं भी निकला सेमनाग राजा के दर्शनों के लिए। दिल्ली से पहले पौडी और फिर श्रीनगर होते हुए हम पहुंचे गडोलिया नाम के छोटे से कस्बे में। यहां से एक रास्ता नई टिहरी के लिए जाता है तो दूसरा लंबगांव। हमने लंबगांव वाला रास्ता पकडा क्योंकि सेम नागराजा के दर्शनों के लिए... आगे पड़ें

डुंडलोद स्थित गोयनका हवेली खुर्रेदार

डुंडलोद स्थित गोयनका हवेली खुर्रेदार

डुंडलोद स्थित गोयनका हवेली खुर्रेदार हवेली के नाम से प्रसिद्ध है। स्थापत्य के अप्रतिम उदाहरण इस हवेली का निर्माण उद्योग कर्मी अर्जन दास गोयनका द्वारा करवाया गया था जो अपने समय के सुविज्ञ और दूरदर्शी थे। व्यापार-व्यवसाय से जुड़े होने के बावजूद वे लोक रंग लोकरीति और लोक कलाओं के संरक्षण के प्रबल इच्छुक थे और इसलिए उन्होंने अपनी इस विशालकाय चौक की हवेली के बाहर दो बैठकें, आकर्षक द्वार और भीतर सोलह कक्षों का निर्माण करवाया था जिनके भीतर   कोटडि़यों, दुछत्तियों, खूटियों, कडि़यों की पर्याप्त... आगे पड़ें

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